फ़ितरत ए तबियत

January 11, 2022 0 Comments

फ़ितरत ए तबियत 

चीजों को धुएं में उड़ा देना मेरी आदत नहीं 

जला के राख कर देना भी मेरी फ़ितरत नहीं 

में तो वह हूँ जो अपने 

concrete के घर में भी पौधे लगाती हूँ. 

मिटटी में बीज डाल, डालिया और फूल उगाती हूँ 

मुझे शौक़ है बाग़ को हरा रखने का. 

हर शाख़ को रंगो से भरने का 

ज़िद नहीं की तूफानों में कश्तिया कोई डूबाऊँ 

ज़िद नहीं की होठों से राख सुलगाऊँ 

ज़िद नहीं की हर प्याली खाली ही करना है 

ज़िद नहीं की आधी पीयी पानी की बोतलों को छोड़ जाऊं. 

 

हौसला जख्मों  में मलहम का है 

महकमा दिलो को रोशन करने का है. 

तुम क्या तोड़ोगे मुझे पत्थर से ?

क्यूंकि में तो हूँ पानी 

बह जाऊं तुमसे भी रिस के.

सैलाब बनने का कोई शौक़ नहीं 

मेरी ख़ुशी हरियाली में है / मेरी ख़ुशी तो बारिश में है 

मेरी मानो तो तुम भी बादल बन 

सुखी हुई नदियों पे बरसो 

क्यूंकि 

मारने वाले से बड़ा हक़, बचाने वाले का होता है 

और विध्वंस व विनाश में कुछ नहीं बचता 

न दीन ना फरोख्त 

ना ही कोई रूहानी सुकून. 

तो विनाश पे विकास चुनो।

प्रयास चुनो, विकास चुनो. 

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लिखित द्वारा: एकता खेतान 

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