शक्कर फिर भूल गयी ..

July 31, 2021 0 Comments

 सुबह से यह दूसरा कप

चाई का ले कर बैठी हूँ।

और दूसरी दफ़ा फिर शक्कर डालना भूल गयी ।

एक बार चाई बनाने जाती हूँ

जब उबाल जाए तो दूसरी दफ़ा उससे छान कर लाने को 

इस आने जाने की फ़िराक़ में 

चाय की चाह कभी कभी दब जाती है 

या कभी प्रबल हो, अपने साथ मुझे भी खोलाती है। 

दिन भर की थकान के बाद सोचती हूँ दो चुस्की चैन से मार लूँ 

मगर चाई की शक्कर के तरह 

कितनी भी कोशिशें कर लूँ

कुछ ना कुछ छूट ही जाता है। 

मेहनत तो पूरी कर लेती हूँ 

मगर मिठास कही रूठ जाता है 


बिस्तर में सिलवटे आ गयी

मगर आँखो में नींद नहीं आयी 

एक झपकी लगी तो याद आया 

की एक काम रह गया था 

दिन रहते उसको निपटा लूँ 

यादों के बीच २-४ झपकियाँ ले लेती हूँ

तकिये को सिरहाने से टिका 

करवाते भी बदल लेती हूँ 

मगर यह वक़्त है की भागता ही रहता है 

स्टडी से निकल किचन तक क्या शक्कर लेने को जाऊँगी  

यही सोच फीकी चाई पी लेती हूँ 

हाथ से ना निकल जाए वो लम्हा

उसे उसी कड़वी चाई के कप में मिला 

चुपके से सुड़क लेती हूँ।

अब तो चाय में शक्कर ढूंढ़ना भी एक आज़माइश है।

कोई मेरी चाय में थोड़ी शक्कर डाल दे यह एक छोटी सी `दिली फ़रमाइश है

यह देखो अब तो बारिश भी शुरू हो गयी,

क्या और एक कप चाय की कोई गुंजाइश है? 😊

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©️ एकता खेतान  

The autor is half Human, half machine. Go Figure or just revel in what I write

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You heard me...now its time for Bouquets and Brickbats!

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