भीड़ में तन्हाई
अकेलापन इंसान की नियति है।
या यह कह लो इंसानियत के बदलते दौर की प्रगति है यह।
जितने भी रिश्ते बना लो, दिल से, मोहब्बत से या अहत्राम से।
कौन कितनी दूर चलेगा यह कहना मुमकिन नहीं।
हर दिन नया रूप बदलता है वक्त।
हर दिन नए रंग बदलते है रिश्ते
जो तुम्हारा था वो ज़रूरी नहीं की तुम्हारा ही रहे
खून से सींचने से भी बाज दफ़ा पौधे सुख जाते है।
रिश्तों पे मेहनत ज़रूर करो, मगर आस को घर मत बनाने दो।
यह जो आस व उमीदें है ना, यही सबसे ज़्यादा दिल तोड़ती है।
कभी वक्त, कभी हालात और कभी फीके हो चुके इंसानी जज़्बात
रिश्तों के रूप उजागर करते है।
एक पल की ख़ुशी में, महीनो की तन्हाई छोड़ जाते है।
में या नहीं कहती की लोग ग़लत है।
ना ही दोष कभी वक्त को दिया है।
यह सब ज़िंदगी की हक़ अदायगी है,
जिसे क़ुबूल कर आगे बढ़ना ही मुक़ाम है।
बेगाने अक्सर हवा के झोंको से ही छूट जाते है।
जो अपने होते है वो हाथ साथ छोड़ते नहीं।
जो अपने हो बेग़ाने हो जाए, उनपे सुभा करना फ़िज़ूल है।
कभी कभी माफ़ करने से भी दुनिया आगे नहीं बढ़ती।
और जो मूड के पीछे ना देखे तुम्हें, उन्हें हवा के मतालिफ छोड़ देना ही बेहतर है।
सो गिला ना कर दिल ए मुरब्बत, अकेले होने का।
यह दुनिया कब किसी की थी जो तेरी होगी?
हर शक्श जो पास हो, वो ज़रूरी नहीं की ख़ास हो।
जो दूर रह के भी रिश्ते निभाते है,
वक्त-बेवक्त आपसे दामन नहीं छुड़ाते है,
वही अपने कहलाते है।
जो ऐसे अपनो को ना पाओ तो भी गिला ना करो,
तन्हाई भी अपनी है,
यह वो राह है जिस पर सभी को चलना होता है।
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Hi Folks,
You heard me...now its time for Bouquets and Brickbats!