Raakh Dil [राख दिल]

June 11, 2022 0 Comments


सुना है कल तुम्हारे शहर में बारिश हुई थी
खूब गरम पकोड़े और चाय छानी।
थोड़े बूँदे यहाँ भी भेज देते
नेह की सूखीं ज़मीन तर जाती
मैंने कई ख़त भी तुम्हें भेज दिए
कुछ सस्नेह, कुछ दिल के हाथों मजबूर लिखे थे।
खून से लिखे रिश्तों में पिरो,
कई कही-अनकही जज़्बातों के
मुज़ाहिरे किए हुए।
कई दर्द छुपाए हुए।

लगता है तुमने वो सारे ख़त जला दिए
और राखों को किसी जंगी संदूक में बंद कर,
किसी समुंदर के हवाले कर दिए।
चलो वो समंदर ही भेज दो
खारा सही पानी तो होगा
में उन्ही को पालकों में समेट फिर किसी कोने में छुपा दूँगी।
या बारिश समझ गले से उतार लूँगी।
कुछ छलकेंगे तो सही,
छलकना इनकी क़िस्मत है,
छलकना इनकी कुदरत है।
छलकना अगर कुदरत है तो, कुदरत ही सही।
कल को मुझे भी राख ही होना है।
चाहे इंतेज़ार में या ऐतबार में।
बंद संदूक़ो या समंदरो के हवाले।
चलो राख है तो राख ही सही।
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यह एक original कृति है। उम्मीद है कि आपको पसंद भी आए। यह copyright protected content है।
सो कृपया इसे मेरी जानकारी के बग़ैर इश्तेमाल ना करे। धन्यवाद।
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Numerounity
©️ एकता खेतान  

The autor is half Human, half machine. Go Figure or just revel in what I write

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