बदलते चेहरे

May 09, 2020 0 Comments




वह सूरत जो पहले  बिलकुल अपनी सी लगती थी।
अब उसे देख पहचानना बहुत मुश्किल होता  है।

देखती रहती हूँ उन आँखो को में,
जिन में कभी अपना अक्स दिखता था। दिखता था जिन्मे कभी किए दर्द कोई अपने लिए,
उन्न आँखो में अब ख़ुद को दूँढ़  पाना बड़ा मुश्किल है।

मुश्किल तो यहाँ जीना भी बहुत लगता है।
मगर हर वक़्त दिल को बहला के जीने को जीना भी नहीं कहते।

वो जो पहले अपनो से भी ज़्यादा अपना लगता था,
उसकी आँखो में अपने लिए बेग़ानियत अब खलती है।
खलती तो ग्रीष्म मौसम में उसके सीने की ठंडक भी है।
सर्दियों में जिस नफ़रत से हाथ जल जाया करते थे,
उन्ही नफ़रतों से इस दिल को रोशन कर रखा है मैंने।

क्यूँ ऐसा होता है ज़िंदगी के साथ?
की जो कभी  प्यार लगता था, अब वही धोका सा महसूस होता है। 
जिसके लिए दुनिया छोड़ने को राज़ी थे हम,
उसके लिए आज यह साँसे ही बोझ लगती है।

हम जिस प्यार के नाम पर अपने आप को धोका देते रहे
उसकी असली शक्ल देख हम रो पड़े तो क्या हुआ?
आँसूओ से कई बार धूँधली पड़ी नज़र भी साफ़ हो जाती है। 

अब जब हम देख ही रहे है तो फिर भी सब धूँधला सा ही लगता है।
जाने इतनी धुँध कहा से छा आयी है।
हम तो हर वक़्त हाथ में कपड़ा रख साफ़ करते चले गए।
अब वो मैल हम ही पर कालिख बन लगायी है, तो हम क्या करे? 
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The autor is half Human, half machine. Go Figure or just revel in what I write

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