जस्ट Rs 999 only!

August 15, 2020 , 0 Comments



वो महीने भर लोगों के घर में 
झूठे बर्तन घिस घिस कर 
१००० रुपए कमाती है
साबुन से जले हाथो को पोंछ कर 
फटी हुई सारी को फिर से सी कर
बाज़ार जाती है 
लाने कुछ ख़ुशी अपनो के लिए
और देख के महेंगे टैग 
ज़रूरत की कुछ चीज़ों पर 
अपना मन मार के फिर रह जाती है।
वो लगाते है महँगे होरडिंग्स 
पिज़्ज़ा हट और चीज़ बर्गर के 
उन सड़कों पे 
जहाँ पे लोग अक्सर भूखे ही सो जाते है। 
भर नहीं सकते तस्वीरों से पेट
करते है और ज़लील उसस भूख को 
जो Just For Rs ९९ only
के नीचे 
दो वक़्त की रोटी और साफ़ पीने के पानी को तरस जाते है। 
क्यूँ है इतनी बड़ी दरार 
वो जो है जिसके पास और नहीं जिसके पास में?
की कोई तो पैसा को पानी की तरह बहाता हे 
और कोई जलती हुई गरमी में
एक बोतल पानी को तरस जाता है?


स्वतंत्रता तो आ गयी,
आत्मनिर्भरता भी आ गयी।
मगर लाचारी से कब हम मुक्त होंगे?
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©️एकता खेतान


Photo Source: NY Times

The autor is half Human, half machine. Go Figure or just revel in what I write

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Hi Folks,

You heard me...now its time for Bouquets and Brickbats!

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