Big बाज़ार - हिंदी कविता एकता

खरीद फ़रोख़्त के बाज़ार में, 
लगे है सब व्यापार में।

कोई यहाँ नेह, तो 
कोई यहाँ देह बेचता है। 
कोई पथर, तो कोई हीरा जड़ता है।

कोहिनूर के तलाश में।
मोतियों के मोहपाश में।
बंजारा बन ग्राहक फिरता है।

मिलता है लोह, पीतल, काँसा, कपास, 
मलमल, ऊन, जाफ़रान, बांस 
तेल, बरतन, कफ़न और औज़ार 
सब इस बाज़ार में।
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कोई रोड पे बीच बिछा चद्दर 
तो कोई गली में लगा ठेला 
कोई ऊँट कार्ट पे तो कोई 
लगा के नौचिन्दी का मेला 

कच्ची -पक्की दुकाने,
बहुमंज़िलो का लगा है रेला पेला।

मुद्रा विनिमय के कारोबार में 
माँग आपूर्ति के संसार में,
ख़ानापूर्ति के गुनहगार यह,
बैठे है सब बाज़ार में।
लगे है सब व्यापार में।
खैरद फ़रोख़्त के बाज़ार में।
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बुनकर, हस्तक, लोहार, सुनार, 
चने भूटाने वाला, अनाज मंडी, दर्ज़ी, दस्तकार 
कुछ निकले है कमाने रोज़ी,
कई निकले है मुनाफ़े के भरसट्टाचार में।

कई दफ़ा तो बाज़ार बजार को खा जाता है।
बड़ी मछली मुनाफ़ा खोरी के लिए 
बेज़ार को  भुला जाता है।
यह बाज़ार है या नरसंहार की फ़ितरत  
जहां व्यापार ही व्यापार को मिटा जाता है।

गुजरते वक़्तों के बयार में 
हसरतों की गुहार में।
इस मतलब भरे संसार में। 
तन जुदा, मन खुदा हो चलता है।
इंसान कब इंसान से इंसान बन के मिलता है? 

कोई ख़रीदने वाले को,
तो कोई बेचनेवाले को ही लूटता है,

आँखो में लालच, खोंसे में ख़ंजर लिए घूमता है। 
इस बाज़ार की फ़ितरत ही जो बदल गयी है।
कल जो ज़रूरत का होता था,
आज रूह बदल, प्रलोभन का गहरा जमाजम है।
इस कुवे में पानी नहीं,
नशे के चमकीले नलके है 
तू हर नल खोलना चाहता है 
तू हर उंस मोलना चाहता है 
चमकीले इश्तहार में,
कभी नगद, तो कभी उधार में।
खड़े सब इस तिजारत के अहवार में 
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पत्थर ले हर सख्श फिरता है यहाँ
तू क्यु अपने शीशे को गिनता है यहा? 
मिलता है सब कुछ मगर मिलती नही वफ़ा
इस जफ़ा भरे हिसार में। 

खरीद फ़रोख़्त के बाज़ार में, 
लगे है सब सिर्फ व्यापार में।

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