अधरों से उतर
कंधे पे ठहर
सी गयी थी मेरी अभिलाषा ।
आँखो से बरस,
लहू में सरस
हाथों में आयी निराशा ।
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सपनो ने लिए नए ढलान,
गहराइयो ने नयी उड़ान
पैरो तले दलदल सी बही विपाशा [नदी]
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स्वरों से जूझी
कानो से बूझी
निर्मम - मलिन धूसरित हुई मेरी आशा।
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Hi Folks,
You heard me...now its time for Bouquets and Brickbats!