जिहाद नहीं, अमन की आशा
पता नहीं किसने जिहाद शुरू किया था और क्या मंसूबा लेकर युग बीते, जिहाद फ़साद में बदल गया और मंसूबा ग़ैर खुदाया हो गया। जो यह जग ना बना होता तो नष्ट क्या करते और अब नष्ट कर दोगे तो हासिल क्या होगा? नफ़रत नहीं चलाती इस दुनिया को ज़ानिब. राज दिलो पे प्यार से करो, किसी और की ज़रूरत ही नहीं महसूस होगी। --------- © numerounity